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लेखनी कविता -07-Dec-2021

हंसाने का कर वादा 

                    वो अब यूँ रुलाते हैं 
बुझाकर दिल के दीपक को 
             वो अब  कैंडल जलाते हैं 
सितमगर का सितम इतना
             सितम भी सहम जाता है 
वादा करके अमृत का 
                   वो मैखाना चलाते हैं 
चलीं हैं आँधियां अब के 
                  जलाये अलाव बैठे हैं 
लगाकर आग घर में 
                वो घर पर ही बुलाते हैं 
हंसाने का कर वादा
                    वो अब यूँ रुलाते हैं 
अंधेरों का लगा पहरा 
                   उजालो में टहलते हैं 
बनाकर दिल को खंडर 
            वो अब अपने महल पे हैं 
जले कोई अगर जूगनू 
            वो कोशिश कर बुझाते हैं 
बुझाकर दिल के दीपक को 
              वो अब कैंडल जलाते हैं 
पिलाने को पिलाते हैं 
                मरे दिल को हिलाते हैं 
ज्यों तडपे नीर बिन मछली
            वो अब कुछ यूँ जिलाते हैं 
नहीं इन्तजार मौत मेरी का 
            वो अब जीवित जलाते हैं 
वादा करके अमृत का 
                  वो मैखाना चलाते हैं 

उदयबीर सिंह गौर
 खमहौरा 
बांदा 
उत्तर प्रदेश 


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9 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

14-Dec-2021 12:22 AM

Nice

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Swati Sharma

13-Dec-2021 06:41 PM

👌🏻👍🏻

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Swati Sharma

13-Dec-2021 11:26 AM

👌🏻👍🏻

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